Saraswati Shishu Vidya Mandir, Darshan Nagar, Chhapra, saran
देश का दूसरा एवं अविभाजित बिहार (बिहार एवं झारखंड का पहला शिशु मंदिर 1954 ई0 में भारती विद्या मंदिर के नाम से छपरा में करिया बाबा मंदिर के नजदीक सरयू नदी के किनारे प्रारंभ हुआ। चूंकि उस समय शिशु मंदिरों का कोई अखिल भारतीय स्वरूप नहीं था इसलिए स्थानीय कार्यक्रताओं ने भारती विद्या मंदिर के नाम से ही विद्यालय की शुरुआत की प्रथम प्रधानाचार्य स्व० रामउदार तिवारी थे।

कुछ ही महीनों बाद विद्यालय यहाँ से स्थान्तरित होकर वर्तमान के लाह बाजार मुहल्ला में आ गया। उस समय श्री रामेश्वर प्रसाद, राम उदार चौधरी के साथ जुड़ गए और अध्ययन-अध्यापन में रस गए। विद्यालय की प्रबंधकारिणी समिति में स्व० प०. शिव कुमार मिश्र, स्व० दुर्गा प्रसाद, स्व० अक्षयवट तिवारी इत्यादि महानुभाव थे। लाह बाजार में भी विद्यालय अधिक दिन नहीं रह पाया और यहाँ से स्थानांतरित होकर दौलतगंज धर्मशाला में चला गया। विद्यालय की स्थिति धीरे-धीरे सुपरने लगी और आचायों की कही में कमला जी स्व० सीताराम पाण्डेय इत्यादि जुड़ते गए।
कुछ ही दिनों बाद धर्मशाला से भी विद्यालय को हटाना पड़ा और कचहरी स्टेशन के समीप स्व० हेमचन्द्र मिश्रा के भवन में आ गया । यहाँ विद्यालय में गति पकड़ी और अपनी छाप समाज में छोड़ना शुरू किया। यहाँ आने पर स्व० सभापति विश्वकर्मा पारिवारिक स्थिति के कारण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक से वापस आ गये थे और तत्कालीन प्रधानाचार्य ने उन्हें आचार्य के रूप में यहाँ काम करने के लिए रख लिया। समिति में श्री राघव सिंह, अधिवक्ता जुड़ गए और विद्यालय दिन-प्रतिदिन प्रगति करने लगा । तत्कालीन कलक्टर एन० नागमणी से लेकर जेनरल करीअप्पा तक विद्यालय में आ चुके हैं। फिर समिति बदली और सभापति विश्वकर्मा सचिव बने तथा श्री राजनंदन पाण्डेय जो महाविद्यालय के छात्र ये आचार्य के रूप में अपना समय देने लगे। उस समय स्व० कमला जी प्रधानाचार्य के कुछ दिनों के बाद कमला जी ने विद्यालय छोड़ दिया और स्व० सीताराम पाण्डेय प्रधानाचार्य बने सीताराम जी के सीवान चले जाने के बाद भी राजनंदन जी प्रधानाचार्य बने । विद्यालय का संख्यात्मक विकास होता रहा। 1986 में वर्तमान भूमि जिस पर अभी विद्यालय अवस्थित है उसे सभी आचायों के परिश्रम एवं अभिभावक के सहयोग से लिज पर लिया गया।
1990 में वर्तमान भूमि पर विद्यालय का शिलान्यास हो गया 35 कमरों के विद्यालय ने विशाल परिसर, सुसज्जित प्रयोगशाला, संगणक कक्ष, समृद्ध पुस्तकालय पर्याप्त खेलोपकरण के सहारे सामाजिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपनी राष्ट्रीय पहचान बनाया है। खेल की बात हो या राष्ट्रीय विज्ञान कांग्रेस की संगीत की बात हो या प्रश्नमंच की यहाँ के भैया-बहनों ने अपना कीर्तिमान बनाया है। डिजिटल क्लासेज द्वारा अत्याधुनिक विधि से अध्यापन करने वाला जिले का पहला विद्यालय होने का गौरव हासिल किया है। वहीं आई०एस० ओ० 9001:2008 से प्रमाणिकृत संस्थान बनकर यह उत्तर बिहार का पहला विद्यालय भी बन गया है।
सभी सुविधाओं से परिपूर्ण होने पर अब बारी थी C.B.S.E. से मान्यता प्राप्त करने की सभी मानदंडों को पूर्ण करते हुए विद्यालय ने C.B.S.E. की मान्यता सन् 2006 में प्राप्त कर लिया। पुनः 2020 में विद्यालय का अनुबंध का विस्तारीकरण 2020 में प्रधानाचार्य श्री आशुतोष कुमार मिश्र के कार्यकाल में हुआ 2018 में ऊपरी तल पर केशव सभागार का निर्माण एवं Atal | Thinkering Lab की स्थापना विद्यालय की उत्कृष्टता में चार चाँद लगा रहे है। विद्यालय ने शैक्षिणिक एवं खेल-कूल में अनेक कृतिमान स्थापित किये है।